सिनेमा ने जगह बना ली थी

 धीरे -धीरे नई तकनीक के साथ और अपने अच्छे विषयों के साथ भारतीय सिनेमा ने जन -जीवन में अपनी स्थाई जगह बना ली थी. अब सिनेमा शर्म की बात नहीं थी.

ये मनोरंजन का सर्वप्रिय साधन था. सर्व -सुलभ नहीं था पर लोग बड़े शहर जाते थे सिनेमा देखने. या शहर जाते तो सिनेमा भी देख आते थे.

वाकई वो सुनहरी यादें है ज़ब लोग सिनेमा देखकर बेहद ख़ुश होते थे. ये सामाजिक स्वीकोरक्ति थी सिनेमा के प्रति.

पारिवारिक और सामाजिक सिनेमा बन रहा था जो मनोरंजन से भरपूर था. वंही मारधाड़ वाली भी फ़िल्में बन रही थी 

समाजसुधार सिनेमा की शर्त हुआ करती थी और सिनेमा धीरे धीरे सुनहरे दौर में प्रवेश कर गया था.

@कॉपी राइट 

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