अब दर्शकों में वो उत्सुकता नहीं रही

 दर्शकों में फ़िल्म के लिए वो उत्सुकता नहीं रही जो किसी जमाने में हुआ करती थी.

तब सबकुछ टैलेंट से होता था मेहनत होती थी यथार्थ होता था किन्तु आज जो फ़िल्म कंपनी खड़ी हुईं है वो कला से नहीं मैनेजमेंट से चल रही है अब मैनेजर होते है जो फ़िल्म को तय करते है.

प्रोडूसर -डायरेक्टर को कॉन्फिडेंस नहीं होता तो सबसे पूछते फिरते है और खिचड़ी बना लेते है जिसका कोई स्तर या टेस्ट नहीं होता.

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