याद आते है मुझे V. शांताराम

 ये एक ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने भोर का उजालों से भरा सिनेमा रचा था. चानी उनकी बच्चों वाली फ़िल्म थी.

दो ऑंखें बारह हाथ

एक अलग ही कथानक बुना गया था.

कैदीयो के ह्रदयपरिवर्तन की शानदार कथा.

वो आदर्श सिनेमा का स्कूल थे.

अपनी बेटी राजश्री के लिए उन्होंने बनाई थी

गीत गाया पत्थरों ने

जीतेन्द्र को ब्रेक दिया था

और शानदार सांस्कृतिक सिनेमा वो रचते थे

बनाने और रचने में यंही तो फर्क होता है

आओ!हम V. शांताराम का आदर्श सिनेमा देखें.

उन सुनहरे दिनों की याद ताज़ा करें.

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