बेहद अकेला होता है सिनेमा रचने वाला
हालांकि सिनेमा एक टीम वर्क है और ये दर्शकों के लिए बनाया जाता है किन्तु सिनेमा को रचने वाला इसके निर्माण काल में अकेला होता है.
वो सब के साथ कान करते हुए भी अपने सपनों के साथ एकाकी होता है. उसके साथी सिर्फ उसके स्वप्न होते है जिन्हें साकार करने वो चल पड़ता है.
वो सिनेमा रचता है और उसके रिस्क के साथ अकेले ही होता है. आर्थिक दिक्क़तों से भी खुद ही जूझता है.
वो कोई गारंटी नहीं होती कि यदि फ़िल्म फ्लॉप हुई तो वो अपना लगाया पैसा कंहा से निकालेगा?
इसी उहापोह में वो सिनेमा बनाता है सिर्फ उसका आत्मविश्वास ही उसे सहारा देता है और वो एक नई दुनिया को रचता है.
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