क्यों रह जाता है अकेला सिनेमा रचने वाला

 अक्सर भीड़ से घिरा होकर भी सिनेमा रचने वाला बेहद अकेला हो जाता है वो जानता है ज़ब उसे जरूरत होती है कोई साथ नहीं होता.

किन्तु ज़ब सबको जरूरत हो वो सबके साथ होता है.

वो सबकी जरूरत पूरी करता है पर उसके दिल की सुनने वाला कोई नहीं होता.

सब उसे बैंक की तरह इस्तेमाल करते है कोई नहीं जानता कि मूवी नहीं चलेगी तो पैसा कैसे निकलेगा फाइनेंस वाले को क्या जवाब देगा.

मूवी बनने के पहले ही उससे वसूली के कागज बन जाते है किन्तु उसे गारंटी देने वाला कोई नहीं होता.

और कई बार बहुत अच्छी फ़िल्म भी कोई नहीं देखता. बनाने वाला अक्सर डिप्रेस्ड हो जाता है. पैसा का फटका अलग लगता है.

अभी कोरोना काल में ऐसे प्रोडयुसर को बहुत नुकसान हुआ है कारण टाइम से रिलीज नहीं होने से बजट बढ़ गया और लोग घरों से निकले नहीं. बेचारे प्रोडयुसर जो नुकसान झेल रहे है उसका दर्द कई बरस क्या ताउम्र रहेगा. कारण पैसे की पूर्ति कौन करेगा? ये लाख टके का सवाल बना रहता है.

@कॉपी राइट 

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट