जो अभी तक किया गया है बेहद खास है

 बॉलीवुड को अपने पैरों पर ही खड़ा होना पड़ा है उसे कंही से कोई मदद नहीं मिली है न ही इंडस्ट्री का दर्जा मिला है.

आज भी फ़िल्म बनाने वाले अपने लिए पैसा खुद जुटाते है फाइनेंस के लिए खुद ही सब कुछ करते है तब फ़िल्म का बजट बनता है. ये कोई हंसी -खेल नहीं है.

कितने लोग पागलों की तरह अपनी जमीन -जायदाद बेच कर आये और सिनेमा में पैसा लगाया.

कभी पैसा निकला कभी बर्बाद हो गया तो लोगों ने इस माध्यम को जुआ कहना शुरू कर दिया फिर भी बनाने वालों की दीवानगी कम नहीं हुई है.

फाइनेंस के लिए क्या -क्या किया गया ये सबकी अपनी कहानी है जिन्होंने जिंदगी भर सिनेमा को दिए वो भी एक बार असफल होने पर अकेले पड़ गए.

यंही इस लाइन की सच्चाई है कि यंहा सबकुछ सफलता से नापा जाता है और इमोशन को इस मोशन में कोई नहीं पूछता.

@कॉपी राइट 

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