आओ!सुबह का सिनेमा रचे!
जिस मधुर और सुन्दर सिनेमा को दादा फालके, राजकपूर, V. शांताराम, सत्यजीत राय, विमलराय जैसे सृजकों ने रचा और जिसे जन -जन के दिलों में बसाया हम सब उसका नव -सृजन करें.
जो हर घर -द्वार की शान बने, देश की जुबान बने आओ!ऐसा सिनेमा रचे जो सुबह का हो. काली रात से निकाल कर उसे सूरज की प्रखर रौशनी में बदले.
इस नए सिनेमा का इंतज़ार हम सभी को है. हमें थिएटर का सिनेमा रचना है जो सिनेमा -घरों में फैमिली के साथ देखा जा सके और जिसका लुत्फ़ दिन के उजाले में उठा सके.
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