राज कपूर का एक अलग अंदाज था फिल्माने
ज़ब स्नेपिक में मै गईं थी तो वंहा मुझे शोहदे मिले थे जो फर्जी संस्था चला रहें थे तब वंही के गुंडे आशीष भनवाल ने एक अजीब से आदमी को बुलाकर कहा था -ये है हमारा असली एक्टर... इसके सामने अमिताभ और गोविंदा भी कुछ नहीं..
उस गपोड़ी की बातें सुनकर गुस्सा आई थी मुझे लगा था इसे चप्पल मार दूँ.
बेमतलब की शेखी बघार रहा था ऐसे कई बदमाश मिल जाते है एक बदमाश आया कहने लगा -आजकल तो अमिताभ -सलमान किसी को कोई नहीं पूछ रहा... सब नया कर रहें.
मुझे लगा ये लोग शायद पोर्न फ़िल्म की बात कर रहें होंगे या गंदी फिल्मों की बात करते होंगे.
वर्ना हमने तो अपने जमाने से अभी तक जिन हीरो को देखा है और उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है वो स्नेपिक के बदमाश चिटर लोगों के लिए सिर्फ कल्पना है सपने में भी ये नहीं पा सकते उस स्टारदम को..
जिनकी बदौलत आज फ़िल्म इंडस्ट्री की शान है उन्हें कुछ भी कहने भर से नहीं होता है करना पड़ता है.
आज राज कपूर जी का रे मैया वता वैया रे मैया वता वैया..
देखी तो समझ आया उनका एक अलग ही समाजवादी अंदाज था और उन्होंने बड़े ही ब्राड माइंड से फ़िल्म की रचना की थी. रे मैया वता वैया जैसा सामाजिक और हर तबके के मेलजोल और सौहार्द का गाना नहीं बना है.
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