हमें मासूम से सिनेमा की जरूरत है
एक बार फिर से देश की जनता उस मासूम सिनेमा को याद कर रही है जिसे गुलजार, ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी ने गढ़ा था. हम उस सिनेमा की अनगिनत फिल्मों को आज भी याद करते है वो मध्यम वर्गीय सिनेमा था जो उच्च और निम्न दोनों वर्गो को लेकर चलता था.
हम फिर से उसी सीधे -सादे मासूम सिनेमा को देखना चाहते है. इस बनावटी सिनेमा से कई बार ऊब होती है.
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