बचपन था तो सपने थे

 हाँ!तब बड़े सुहाने दिन थे बड़ी प्यारी फ़िल्म बनती थी बहुत ही कर्णप्रिय और मधुर संगीत होता था.

मै घर में आने वाली पत्रिका जो हमारे जीजाजी लाते थे माधुरी से फिल्मों के बारे में सब सीख रही थी.

फ़िल्म की पटकथा लिखना तभी मेरे दिमाग़ में घुस रहा था मै तब जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है, बूट पोलिश और ऐसी ही अच्छी फिल्मों की पटकथा को पढ़ और समझ रही थी. तब मैंने देवदास की भी स्क्रिप्ट पढ़ी थी. हालांकि कम आयु की वजह से ज्यादा समझ नहीं थी फिर भी पटकथा का जो तकनीकी ड्राफ्ट होता था वो मै आत्मसात करती गईं. और पटकथा लिखना मेरी आदत में शुमार होते चले गया था 8वी क्लास में पहुंचने के पूर्व ही. इसके लिए मेरे जीजाजी को आभार कहना चाहूंगी जिन्होंने अनजाने में शौकिया तौर पर माधुरी और चित्रलेखा खरीद कर लाते थे और मै उससे पटकथा व गीत लेखन की तैयारी कर रही थी.

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