बचपन में पढ़ती थी माधुरी
मेरा वो साल बुआ जी के यंहा से आने और डरने की वजह से यूँ ही जाया हो गया था तो मै माधुरी पढ़ती उसमें भी छपी स्क्रिप्ट पढना मुझे भाता था और मैंने सीखी थी स्क्रिप्ट लिखने की कला तभी से मै स्क्रिप्ट की तरह स्टोरी को खुद ही लिखती थी.
आज इस कला को प्रोफेशनल तरिके से लिख रही हूँ और कोई सीखे तो उन्हे मात्र 1000/में दो क्लास लेकर स्क्रिप्ट लिखना सीखा सकती हूँ और कई सवालों के जवाब भी दे सकती हूँ.
मैंने चित्रलेखा से भी स्क्रिप्ट पढ़ कर सीखी. ये पत्रिका तब निकलती थी. हमारे गांव में नहीं मिलती थी तब हमारे जीजाजी गोंदिया जाते तो कई किताबें लाते थे जिनमें उपन्यास होते जिन्हें दीदी पढ़ती थी और मै माधुरी और चित्रलेखा पढ़ती जिनमें फ़िल्म जगत की खबर होती थी.
हम लोग अपने जमाने के हीरो -हीरोइन और फिल्मों के जैसे दीवाने थे. मै शाम 5बजे आने वाली बस बैन्गँगा का इंतज़ार करती जिससे हमारे जीजाजी आने वाले होते और जैसे ही वे पत्रिका लेकर आते मै फ़ौरन माधुरी और चित्रलेखा लेकर पढ़ने में तल्लिन हो जाती थी.
Pls!तल्लिन को टल्ली मत समझना तल्लिन यानि मग्न हो जाना.
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